Akshaya Patra की भूमिका

Akshaya Patra फ़ाउंडेशन ने जून 2000 में मध्याह्न-भोजन कार्यक्रम की शुरुआत की थी। तब यह बंगलुरु, कर्नाटक के पाँच सरकारी विद्यालयों के 1,500 बच्चों को भोजन प्रदान करता था। पिछले 19 वर्षों के दौरान, भारत सरकार के सतत सहयोग तथा विभिन्न राज्य सरकारों एवं सम्बन्धित संगठनों के योगदान से यह कार्यक्रम कई गुना वृद्धि हासिल कर चुका है। आज यह संगठन 16,856  सरकारी तथा सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालयों में 18 लाख बच्चों को निःशुल्क मध्याह्न-भोजन प्रदान करता है। संगठन वर्तमान में भारत के 12 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों में 51 रसोई पर उपस्थित है। Akshaya Patra फ़ाउंडेशन को विश्व का सबसे बड़े, गैर-सरकारी संस्था द्वारा संचालित मध्याह्न-भोजन कार्यक्रम का दर्जा दिया गया है। (source).

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मध्याह्न-भोजन कार्यक्रम के क्रियान्वयन में Akshaya Patra की भूमिका, विद्यालयी भोजन प्रदान करने मात्र से कहीं अधिक है। यह संगठन इस कार्यक्रम के माध्यम से दो सर्वाधिक महत्वपूर्ण सहस्त्राब्दि विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने पर लक्षित है : भूख का उन्मूलन एवं प्राथमिक शिक्षा का सार्वभौमिकीकरण।

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यह गैर-लाभप्रद संगठन ‘भारत का कोई भी बच्चा भूख की वज़ह से शिक्षा से वंचित नहीं होगा’ के अपने संदृश्य की दिशा में कार्य करता है। इस संदृश्य को हासिल करने के लिए, Akshaya Patra ‘शिक्षा के लिए असीमित भोजन’ प्रदान करता है। यह पौष्टिक भोजन, अकसर पूरे दिन के लिए उनका एकमात्र पोषण स्रोत होता है। अतः यह सुनिश्चित करने के लिए, कि प्रत्येक बच्चा इस एक भोजन के माध्यम से लाभान्वित हो, Akshaya Patra ऐसा पोषक भोजन तैयार करता है जो बच्चों की स्थानीय स्वाद-रुचियों के अनुकूल भी होता है। उदाहरण के लिए, उत्तर भारतीय रसोईयाँ रोटियाँ परोसती हैं वहीं दक्षिण भारतीय रसोईयों द्वारा चावल परोसे जाते हैं।

फ़ाउंडेशन अपने प्रचालनों को दो भिन्न रसोई मॉडलों - केन्द्रीयकृत एवं विकेन्द्रीकृत - के माध्यम से संचालित करता है।

केन्द्रीयकृत रसोईयाँ विशाल, फ़ैक्ट्री-जैसी रसोई इकाईयाँ हैं जिनकी क्षमता आमतौर पर प्रतिदिन 1,00,000 तक बच्चों के लिए भोजन पकाने की होती है। प्रत्येक रसोई, इकाई के आस-पास स्थित कई विद्यालयों को सेवाएं देती है। ये इकाईयाँ अर्ध-स्वचालित होती हैं जिससे भोजन पकाने की प्रक्रिया के दौरान स्वच्छता सुनिश्चित होती है। केन्द्रीयकृत रसोईयों में प्रयुक्त प्रौद्योगिकी एवं प्रक्रिया हार्वर्ड (स्रोत) एवं कई अन्य प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम तथा पाठ्यचर्या में अनुसन्धान एवं अध्ययन का विषय रही हैं।

ऐसे स्थानों, जहाँ कठिन भौगोलिक भूभाग एवं अनुपयुक्त सड़क संयोजकता जैसे कारक विशाल अवसरंचना के निर्माण को समर्थित नहीं करते, वहाँ विकेन्द्रीकृत रसोई मॉडल आदर्श व्यवस्था होती है। विकेन्द्रीकृत रसोई इकाईयों का संचालन Akshaya Patra के रसोई प्रक्रिया एवं प्रचालन मॉड्यूल के मार्गदर्शन एवं पर्यवेक्षण के अन्तर्गत महिला स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) द्वारा किया जाता है।

बाल स्वास्थ्य क्षेत्र के विभिन्न प्रतिष्ठित संगठनों द्वारा संचालित सर्वेक्षणों के अनुसार, देश की 40 प्रतिशत जनसंख्या 18 वर्ष से कम आयु की है। इसमें से 50 प्रतिशत से भी कम अंश विद्यालय जाता है। प्रतिदिन मात्र एक समय का भोजन जुटाने के लिए, आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियाँ इन बच्चों को शिक्षा छोड़कर गुलामों जैसी नौकरियाँ चुनने पर विवश कर देती हैं। अनुसन्धान से यह भी पता चला है कि भूख और कुपोषण की स्थिति की प्रधानता के कारण सार्वभौमिक शिक्षा पीछे छूट गई है। ये दो कारक, विद्यालयों में प्रवेश लेने की संख्याओँ को घटाते हैं, प्रदर्शन स्तर को घटाते हैं और विद्यालय बीच में ही छोड़ देने की दरों को बढ़ाते हैं। बालिकाओं में ऐसा विशेषकर अधिक होता है। भूख, विशेषकर पढ़ाई के वक्त भूखे रहने की स्थिति, बच्चे के प्रदर्शन को घटाती है, वह विद्यालय नहीं जाता हो तो भी। ठीक इसी बिन्दु पर, बाल शिक्षा में गैर-सरकारी संस्थाओं की भूमिका के अलावा, मध्याह्न-भोजन योजनाएं इन बच्चों को विद्यालय तक लाने में बहुत बड़ा प्रोत्साहन सिद्ध होती हैं। यह उन्हें काम करने से रोकती है और काम की बजाए अध्ययन करने और शिक्षित होने के लिए प्रोत्साहित करती है। इस प्रकार यह कार्यक्रम प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमिकीकरण में भी मदद करता है।

जब बात गुणवत्ता की हो तो Akshaya Patra में हम कोई समझौता नहीं करते। भले ही व्यवस्था केन्द्रीयकृत हो या विकेन्द्रीकृत, Akshaya Patra की रसोईयों में स्वच्छता एवं साफ़-सफ़ाई सर्वोच्च महत्व रखते हैं। इस गैर-लाभप्रद संस्था के कार्य को मध्याह्न-भोजन कार्यक्रम की राष्ट्रीय दिशा-नियन्त्रक-सह-निरीक्षण समिति द्वारा सम्मानित किया जा चुका है।

इस सार्वजनिक-निजी साझेदारी की सफलता को व्यापक रूप से सराहा गया है और इसे अपनाए जाने योग्य आदर्श साझेदारी की मान्यता भी दी जा रही है। फ़ाउंडेशन को द ग्लोबल जर्नल द्वारा विश्व की शीर्ष 100 गैर-सरकारी संस्थाओं के मध्य 23वां स्थान देकर वैश्विक रूप से सम्मानित भी किया गया है।

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