अक्षय पात्र फ़ाउंडेशन का इतिहास

हमारे फ़ाउंडेशन का इतिहास एक करुण कथा के साथ आरम्भ होता है -

कलकत्ता के समीप, मायापुर नाम के गाँव में एक दिन परम पूज्यनीय ए. सी. भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद ने खिड़की से बाहर देखते हुए बच्चों के एक समूह को फेंके हुए भोजन के लिए आवारा कुत्तों के साथ लड़ते देखा। इस छोटी सी किन्तु दिल तोड़ देने वाली घटना से एक निश्चय उत्पन्न हुआ कि : हमारे केन्द्र के दस मील के दायरे के अन्दर कोई भी भूखा नहीं रहेगा।

उनके इस प्रेरणादायक संकल्प से हमें Akshaya Patra फ़ाउंडेशन को वह बनाने में मदद मिली जो वो आज है।

जून 2000 में, Akshaya Patra फ़ाउंडेशन  ने बंगलुरु, कर्नाटक में मध्याह्न-भोजन कार्यक्रम शुरु किया। क्रियान्वयन के शुरुआती दिन संगठन के लिए आसान नहीं थे लेकिन जल्द ही दो सज्जन पुरुषों का सहयोग प्राप्त हुआ। मोहनदास पाई ने विद्यालयों तक भोजन पहुंचाने के लिए वाहन दान देने की पहल की और अभय जैन ने कार्यक्रम के विस्तार के लिए योगदान देने हेतु और अधिक दाताओं को लाने का वचन दिया।

इस महान अभिलाषा के अनुसरण में, कार्यक्रम ने यह संदृश्य अपनाया कि - “भारत में कोई भी बच्चा भूख की वज़ह से शिक्षा से वंचित नहीं होगा।”

बंगलुरु में  पाँच सरकारी विद्यालयों में 1500 बच्चों को मध्याह्न-भोजन प्रदान करने के साथ इसकी छोटी सी पहल की शुरुआत हुई।

आज भारत सरकार एवं कई राज्य सरकारों के साथ साझेदारी और साथ ही कई समाज-सेवी दाताओँ की उदारता के साथ यह संगठन विश्व के सबसे बड़े मध्याह्न-भोजन कार्यक्रमों में से एक का संचालन करता है। सार्वजनिक-निजी साझेदारी पर निर्मित Akshaya Patra, पोषक एवं स्वच्छ विद्यालयी मध्याह्न-भोजन प्रदान करने के लिए उत्तम प्रबन्धन, नव-प्रवर्तनकारी प्रौद्योगिकी और चतुर इंजीनियरिंग को एक-साथ जोड़ता है।

संगठन भारत के 12 राज्यों में 38 रसोई पर 14,314 सरकारी विद्यालयों के 17 लाख वंचित बच्चों को रोज़ाना ताजा पका, स्वास्थ्यकर भोजन वितरित करता है।

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